बिहार की गुणवत्ताहीन शिक्षा व्यवस्था शिक्षकों के गुणवत्ताहीन प्रशिक्षण का परिणाम है
हम अपने बच्चों को आज भी वैसे ही शिक्षा देते हैं जैसा कि अंग्रेज हमें देकर गए। 1917 में सैडलर कमिशन के सुझाव के बाद हमें स्कूल सिस्टम मिला। स्कूल सिस्टम को शिक्षक, प्रधानाचार्य, समाज, और संगठन के द्वारा चलाया जाता है। इनमें प्रमुख भूमिका शिक्षकों की होती है।
प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा बच्चों तक पहुंचाने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। प्राथमिक तथा माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य है। प्राथमिक शिक्षक (कक्षा 1 से 5) के लिए इंटर तथा डीएलएड व माध्यमिक शिक्षक (कक्षा 6 से 10) के लिए स्नातक तथा B.Ed की अनिवार्यता है।
वर्तमान में बिहार में 340 शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र हैं, जिनमें 333 निजी तथा 7 सरकारी कॉलेज सम्मिलित हैं। जहां केवल बिहार में प्रत्येक वर्ष लगभग 35000 अभ्यार्थी प्रशिक्षित होते हैं। वही देश की बात करें तो देश भर में लगभग 6800 B.Ed कॉलेज हैं, जिससे प्रत्येक वर्ष लगभग 75000 छात्र प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। अगर B.Ed कॉलेज के फीस की बात की जाए तो सरकारी कॉलेजों में यह मात्र ₹35000 है। वह निजी कॉलेजों में बढ़कर ₹150000 हो जाती है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजों की मनमानी और फीस वृद्धि को लेकर शुल्क निर्धारित कर दिया था। लेकिन अब भी कई ऐसे कॉलेज हैं जो मनमाना फीस वसूलते हैं।
राज्य के ज्यादातर निजी कॉलेजों का स्वामित्व सफेदपोश लोगों के ही होता है। इन्हीं के द्वारा कॉलेजों की निगरानी होती है। अब आप समझ ही गए होंगे कि इन कॉलेजों की शिक्षा व्यवस्था कैसी होगी। सरकारी कॉलेजों को छोड़कर सभी निजी कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थी केवल सिर्फ डिग्री लेते हैं। प्रशिक्षण तो नाममात्र का होता है। ऐसे प्रशिक्षुओं से आप बच्चों की शिक्षा का क्या उम्मीद कर सकते हैं। यही मुख्य कारण है कि आज के सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थी निजी कोचिंग के सहारे आगे बढ़ रहे हैं। जब शिक्षा व्यवस्था की जड़े खोखली है तो हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात कैसे कर सकते हैं?
लेखकः
कैलाश कुमार
B.Ed
Bihar really needs to improve on education! well written!
धन्यवाद